About Lord Jagannath Temple Puri जगन्नाथ पुरी मंदिर के बारे में –
हिन्दू धर्म में चार बड़े धाम बताये गए हैं जिनमें से पुरी का श्री जगन्नाथ मन्दिर एक है, जो भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है। इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इसमें मन्दिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित है। यह मंदिर अपने कलात्मक आकृति, अनूठेपन तथ्यों के लिए भी जाना जाता है।

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Jagannath Temple Building जगन्नाथ मंदिर निर्माण –
भगवान जगन्नाथ की नीलमणी से निर्मित मूल मूर्ति मालवा के राजा इन्द्रद्युम्न को अगरु वृक्ष की नीचे मिली थी। ऐसा बताया जाता है की भगवान विष्णु ने राजा के स्वप्न में आकर उस मूर्ति से मंदिर निर्माण की बात कही तब मालवा नरेश ने बढ़ई कारीगर को बुलाया जो भगवान विष्णु और विश्वकर्मा के कारीगर के रूप में राजा के सामने उपस्थित हुए थे।
मूर्ति निर्माण के लिए कारीगर ने यह शर्त राखी थी, कि वे एक बंद कमरे में एक माह के भीतर मूर्ति तैयार कर देंगे तब तक उस कमरे के भीतर कोई भी नहीं आएगा। परन्तु माह के अंतिम दिन तक जब मूर्ति निर्माण की कोई आवाज नहीं आयी तो राजा ने कमरा खोल लिया तब वृद्ध कारीगर बाहर आकर बोला कि मूर्तियां अभी अपूर्ण है, मूर्तियों के हाथ बनने बाकी हैं। तब राजा ने कारीगर के सामने अफ़सोस जताया तो कारीगर ने कहा है दैववश हुआ है हम इन मूर्तियों को अब ऐसे ही स्थापित करेंगे। तब से वही तीनों जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियाँ मन्दिर में स्थापित की गयीं।

Gold Used in Jagannath Temple मंदिर में लगे सोने का सबसे बड़ा दान –
पंजाब प्रान्त के राजा महाराजा रणजीत सिंह, महान सिख सम्राट ने इस मन्दिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिये गये स्वर्ण दान से कहीं अधिक था। उन्होंने अपने अन्तिम दिनों में यह वसीयत भी की थी, कि विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा, जो विश्व में अब तक सबसे मूल्यवान और सबसे बड़ा हीरा है, इस मन्दिर को दान कर दिया जाये। लेकिन यह सम्भव ना हो सका, क्योकि उस समय तक, ब्रिटिश ने पंजाब पर अपना अधिकार करके, उनकी सभी शाही सम्पत्ति जब्त कर ली थी। वर्ना कोहिनूर हीरा, भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता।

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Temple Structure of Jagannath जगन्नाथ मंदिर का ढ़ांचा –
मंदिर का वृहत क्षेत्र 400,000 वर्ग फुट (37,000 स्क्वायर मीटर) में फैला है और चारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्यतम स्मारक स्थलों में से एक है।
मुख्य मंदिर वक्ररेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर विष्णु का श्री सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मीटर) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है।
मंदिर का मुख्य भवन एक 20 फीट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा से रक्षित हैं।

Jagannath temple Tourism जगन्नाथ मंदिर पर्यटन –
इस मंदिर में प्रविष्टि प्रतिबंधित है। इसमें गैर-हिन्दू लोगों का प्रवेश सर्वथा वर्जित है। पर्यटकों की प्रविष्टि भी वर्जित है। वे मंदिर के अहाते और अन्य आयोजनों का दृश्य, निकटवर्ती रघुनंदन पुस्तकालय की ऊंची छत से अवलोकन कर सकते हैं। इसके कई प्रमाण हैं, कि यह प्रतिबंध, कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और श्रेणिगत हमलों के कारण लगाये गये हैं। बौद्ध एवं जैन लोग मंदिर प्रांगण में आ सकते हैं, बशर्ते कि वे अपनी भारतीय वंशावली का प्रमाण, मूल प्रमाण दे पायें। मंदिर ने धीरे-धीरे, गैर-भारतीय मूल के लेकिन हिन्दू लोगों का प्रवेश क्षेत्र में स्वीकार करना आरम्भ किया है।
Jagannath Rath Yatra भगवान जगन्नाथ पावन रथ यात्रा –
पूर्ण परात्पर भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरम्भ होती है। यह रथयात्रा पुरी का प्रधान पर्व भी है। इसमें भाग लेने के लिए, इसके दर्शन लाभ के लिए हज़ारों, लाखों की संख्या में बाल, वृद्ध, युवा, नारी देश के सुदूर प्रांतों से आते हैं।
रथयात्रा के दिन रथ में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अन्त में गरुण ध्वज पर या नन्दीघोष नाम के रथ पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं। तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊँचा होता है। इसमें 7 फीट व्यास के 17 पहिये लगे होते हैं। बलभद्र जी का रथ तालध्वज और सुभद्रा जी का रथ को देवलन जगन्नाथ जी के रथ से कुछ छोटे हैं। सन्ध्या तक ये तीनों ही रथ गुंडिचा मन्दिर में जा पहुँचते हैं, जहाँ इनके मौसी का घर होता है। अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मन्दिर में प्रवेश करते हैं और सात दिन वहीं रहते हैं। इसके बाद पंचांग के मुताबिक आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को वापस मंदिर लौटेंगे। मंदिर लौटने वाली इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।

Facts About Jagannath Temple Puri जगन्नाथ मंदिर पुरी के बारे में रोचक तथ्य –
- जगन्नाथ मंदिर तक़रीबन एक हजार आठ सौ साल पुराना है।
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर 4 लाख वर्गफीट एरिया में बना हुआ है।
- मंदिर के ऊपर लगा ध्वज बिना किसी वैज्ञानिक पृष्ठभूमि के यह हवा के विपरीत दिशा में लहराता रहता है।
- मंदिर के ध्वज को वहां के मुख्य पुजारी 45 मंजिल जितना ऊपर चढ़कर प्रतिदिन बदलते है।
- जगन्नाथ मंदिर के ध्वज को एक दिन बदलना भूल जाये तो मान्यताओं के अनुसार मंदिर को 18 वर्षों तक बंद कर दिया जायेगा।
- ऐसा कहा जाता है कि दिन में सूर्य की रोशनी में भी मंदिर की छाया चारों ओर से किसी भी जगह पर नहीं पड़ती है।
- इस मंदिर के शिखर पर लगा सुदर्शन चक्र लगभग 1 टन जितना वजनी है जो बिना किसी मशीनरी के इसके शिखर पर लगाया गया है।
- मंदिर पर लगा सुदर्शन चक्र को आप चारों ओर किसी भी दिशा से देखोगे तो आपको यह जैसे सामने से दिखाई देता है वैसा ही आपको दिखेगा।
- ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के ऊपर आपको एक भी पक्षी उड़ता हुआ नहीं दिखाई देगा।
- मंदिर के ऊपर से हवाई सफर व अन्य सभी हवाई साधन प्रतिबंधित है जो मंदिर के ऊपर से निकल सके।
- इस मंदिर में रोज आने वाले भक्तों की संख्या 2000 से लेकर 200000 लोगों तक होती है।
- मंदिर में बनने वाला महाप्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है परन्तु यह महाप्रसाद कभी भी न तो कम पड़ा है और न ही एक टुकड़ा प्रसाद का बचा है।
- मंदिर के पास समुद्र होने के बावजूद भी आप जैसे ही मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको किसी भी प्रकार की बाहरी ध्वनि का आभास तक नहीं होगा, समुद्र की लहरों की आवाज भी बंद हो जाती है।
- यहाँ पर दिन के समय हवा जमीन से समुद्र की ओर चलती है और शाम को इसके विपरीत होता है।
- महाप्रसाद बनाने के लिए पुजारियों द्वारा 7 बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर प्रसाद पकाया जाता है, आश्चर्य की बात यह है कि सबसे ऊपर वाले बर्तन में प्रसाद सबसे पहले पककर तैयार होता है।
- इस मंदिर में देवताओं की पुरानी मूर्तियों को हर 14-18 साल में खंडित कर दिया जाता है और उनके स्थान पर नीम की लकड़ी से बने नए देवताओं को स्थापित किया जाता है।
- यदि अंग्रेजों ने भारत पर कब्ज़ा न किया होता तो आज बेशक़ीमती कोहिनूर हीरा भगवान जगन्नाथ के मुकुट की शान होता।
- मंदिर की रसोई सबसे बड़ी रसोई इसलिए मानी जाती है क्योंकि यहाँ पर एक साथ 500 रसोइये व 300 सहयोगी एक साथ रसोई बनाते है।
- यह एक ऐसा मंदिर है जहाँ पर पर्यटकों के आने जाने पर रोक है।
- हर वर्ष रथ यात्रा के दौरान रथ बनाने के लिए लकड़ी को काटने के लिए सोने की कुल्हाड़ी का प्रयोग होता है।
- वर्ष 2023 में रथ यात्रा के दौरान तक़रीबन 25 लाख लोग रथ यात्रा में शामिल हुए थे।
- हर वर्ष होने वाली रथ यात्रा के शुरू होने से पहले राजपरिवार के सदस्य सोने की झाड़ू से बुहारा लगाते हैं।
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